ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के कारण राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ और इन्हें सजा भी दी गई
आजादी की लड़ाई में सुखदेव पातर (पातर हल्बा) का योगदान
09 जनवरी को सुखदेव पातर की पुण्यतिथि पर विशेष लेख
महात्मा गांधी से प्रेरित अहिंसक आंदोलन में भाग लेकर आदिवासी क्रांतिवीरों ने भी देश की स्वतंत्रता के लिए योगदान दिया है। इन अमर बलिदानियों में ग्राम भेलवापानी, दुर्गकोंदल, तहसील भानुप्रतापपुर, जिला कांकेर निवासी स्व. सुखदेव पातर (पातर हल्बा ) का नाम उल्लेखनीय है।
सुखदेव पातर का जन्म सन 1892 में ग्राम राउरवाही, कांकेर में हुआ था। इनके पिता का नाम रघुनाथ हल्बा था। इनके पूर्वज बहेटीपदर, डुमरतराई जिला नारायणपुर के हैं। सुखदेव पातर के दादा चैनूराम शिकार खेलने के शौकीन थे। किसी काल में कांकेर क्षेत्र के राउरवाही गांव में प्रवासित हुये थे।
वर्ष 1920 में पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात हुआ
अंग्रेजों की शोषण नीति, अत्याचारी व्यवहार से कांकेर क्षेत्र की जनता में भारी आक्रोश व्याप्त था। वर्ष 1920 में पूरे देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। कण्डेल नहर सत्याग्रह में आंदोलनकारियों की हौसला अफजाई के लिए महात्मा गांधी का प्रथम छ.ग. आगमन 1920 में हुआ। सुखदेव पातर अपने दो साथियों इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार के साथ गांधी जी से भेंट करने कांकेर से पैदल चलकर धमतरी गये। गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होंने इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार के साथ मिलकर दुर्गकोंदल क्षेत्र में गांधीवादी तरीके से ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था। ये तीनों आजादी के मतवाले गांव-गांव घूमकर, चरखायुक्त तिरंगा झंडा लेकर हाट-बाजारों में देशभक्ति का प्रचार कर लोगों को जागरूक करते थे।
पातर हल्बा और साथियों की गतिविधियों से कांकेर रियासत का ब्रिटिश प्रशासन भयभीत हो उठा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी सुखदेव पातर ने सक्रिय भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी के द्वितीय छ.ग. प्रवास 1933 ई. के दौरान सुखदेव पातर, इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार गांधी जी से मिलने दुर्ग गये। इनके प्रयासों से सुरूंगदोह, भेजलपानी और दुर्गकोंदल आजादी की लड़ाई के प्रमुख केन्द्र बन गये। पातर हल्बा और साथियों की गतिविधियों से कांकेर रियासत का ब्रिटिश प्रशासन भयभीत हो उठा। कांकेर रियासत के अधीक्षक रघुवीर प्रसाद ने 1933 में सुखदेव पातर और साथियों को पकड़ने के लिए दो बार अभियान चलाया। कोड़े कुरसे बाजार और अन्य जगहों पर इन्हें तलाशा गया लेकिन वे पकड़े न जा सके।
सुखदेव पातर ने सुरूंगदोह और गोटुलमुंडा गांव में आजादी का खम्भा गाड़कर चरखायुक्त झण्डा फहराया था
सुखदेव पातर के नेतृत्व में स्वतंत्रता की लड़ाई में आदिवासियों को प्रेरित करने खण्डी नदी घाट पर पातर बगीचा में एक सभा बुलाई गई, जिसमें लगभग दो सौ से तीन सौलोग चरखायुक्त तिरंगा झंडा लिये मौजूद थे। इस बैठक में पातर हल्बा और साथियों ने लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया। वर्ष 1944-45 में पातर हल्बा, इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार के नेतृत्व में कांकेर रियासत के दीवान टी. महापात्र द्वारा भू-राजस्व (लगान) में वृद्धि किये जाने के विरोध में भू राजस्व विरोधी आंदोलन चलाया गया। इन तीनों पर ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के कारण राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ और इन्हें सजा भी दी गई। देश आजाद होने पर सुखदेव पातर ने सुरूंगदोह और गोटुलमुंडा गांव में आजादी का खम्भा गाड़कर चरखायुक्त झण्डा फहराया था। भारत माता के सच्चे सपूत, आजादी के इस दीवाने का 09 जनवरी 1962 को स्वर्गवास हो गया ।
दुर्भाग्य से आज पर्यन्त तक इस देशप्रेमी सपूत को उसके योगदान का वास्तविक सम्मान नहीं मिल सका है
अखिल भारतीय आदिवासी हल्बा समाज एवं इनके वंशज ढाल सिंह पातर द्वारा शासन-प्रशासन से सुखदेव पातर को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा देने की मांग की गई है लेकिन दुर्भाग्य से आज पर्यन्त तक इस देशप्रेमी सपूत को उसके योगदान का वास्तविक सम्मान नहीं मिल सका है। सुखदेव पातर के क्रांतिकारी गतिविधियों की जानकारी पुलिस थाना दुर्गकोंदल और भानुप्रतापपुर में संधारित व्ही, सी, एन बी (विलेज क्राईम नोटबुक) 1941-1942 से मिलती है।
प्रदीप जैन, सहा. प्राध्यापक (इतिहास), भानुप्रतापदेव शा.स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय कांकेर का शोधपत्र, आजादी की लड़ाई का सच्चा सैनिक था-पातर हल्बा से भी आजादी की लड़ाई में इस क्रांतिवीर के योगदान का जिक्र मिलता है। भारत माता के सपूत सुखदेव पातर की समाधि खण्डी नदी घाट के पास स्थित है। प्रतिवर्ष 09 जनवरी को इनकी पुण्यतिथि पर लोग दूर-दराज से आकर इस क्रांतिवीर को श्रद्धानवत होकर नमन करते हैं, उनके योगदान को स्मरण कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।