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ये कभी न कहें कि मै अकेली हूं, हमेशा यही सोचे कि मैं अकेले ही काफी हूँ

ये कभी न कहें कि मै अकेली हूं, हमेशा यही सोचे कि मैं अकेले ही काफी हूँ


लेखिका-विचारक,
वंदना तेकाम,
सामाजिक कार्यकर्ता
नैनपुर, जिला-मण्डला,
मध्यप्रदेश

8 मार्च महिला दिवस, इस दिन महिलाओं में एक उत्साह देखने को मिलता है, समाज में उत्साह देखने को मिलता है। महिलाओं का सम्मान दिवस है, क्या यह सम्मान हर दिन नहीं हो सकता, क्या महिला हर दिन अपने आप को सम्मानित महसूस नहीं कर सकती है। ऐसे कितने ही सवाल और ख्याल मन से गुजरते चले जाते है।
                

सबसे पहले समाज की बात करू जहाँ सिर्फ महिलाओं के लिए हर प्रकार के नियम लागू होते है। इन नियमों, शर्तों को बढ़ावा देने में पुरुष ही नहीं, महिलाओं की आधी आबादी सहयोग करती नजर आती है क्योंकि वे ऐसे समाज का हिस्सा है जहाँ किसी की जिंदगी मान-सम्मान इनकी शर्तों से बढ़कर कुछ नहीं। 

क्योंकि पुरूष को समाज ने हर शर्तों से बंधनों से मुक्त कर रखा है ? 

एक ओर जहाँ छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अनैतिक घटनाए देखने को मिलती है तो दूसरी ओर महिलाओं के कंपड़ों पर सवाल उठाया जाता है, यह विचार करने वाली बात है। हम किस मानसिकता को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। यदि किसी महिला के साथ कोई अनैतिक घटना हो जाए तो लोग उसके चरित्र पर सवाल उठाते है। यहीं पर कभी भी, पुरूष के चरित्र की बात नहीं आती और न ही उसकी ओछी मानसिकता की बात आयेगी क्योंकि पुरूष को समाज ने हर शर्तों से बंधनों से मुक्त कर रखा है। 

संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है 

मैं उस समाज की बात कर रही हूं जहां महिलाएं भी रहती हैं, जिन्हें संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है। इस बात को पुरूष से जयादा महिलाओं को समझना होगा की उनके अधिकार क्या है और इन अधिकारों को वो कैसे अपने जीवन में उपयोग कर सकती है। अक्सर महिलाए मानसिक रूप से ये बात स्वीकार करते हुए नजर नहीं आती की उनका भी कोई अस्तित्व है, उनकी भी कोई जिंदगी है, जिसे वह अपने अंदाज में जी सकती है।
            बिना किसी रोक टोक के बिना किसी के सहारे क्योंकि हमेशा महिला हो या या लड़की हो, मां-पिता, भाई, पति के सहारे के रूप में ये रिश्ते जरूरी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। क्यों भाई क्या एक लड़की या महिला जो आत्मनिर्भर है।
            हर कार्य में दक्ष है अपने अंदाज से जीवन व्यतीत नहीं कर सकती ? यहाँ पर महिलाओ को जो अधिकार मिले है उसका क्या?, महिलाओं के सम्मान का क्या?, महिलाओ के आत्मसम्मान का क्या ? क्या एक महिला बिना सहारे के समाज में नहीं जी सकती।

हर महिला पुरूषों से ज्यादा ताकतवर होती है, उसे हर परिस्थिति में जीना आता है 


मैं वंदना तेकाम स्पष्ट करना चाहूंगी हर महिला पुरूषों से ज्यादा ताकतवर होती है, उसे हर परिस्थिति में जीना आता है, बस उसे ये समझ आ जाये कि सिर्फ और सिर्फ दकियानूसी समाज के आडंबर से दिया है। जो उसे उसकी ताकत को पहचानने से रोक रहे है, ये समाज वहीं समाज है जो एक तरफ महिला पुरूष समानता की बात करता है                 

दूसरी ओर महिलाओं का्रे मानसिक रूप से आगे बढ़ने से रोकता है, समाज के कुछ नियम जैसे शर्म, हया, आदि जो सिर्फ महिलाओं पर लागू होते है। ये सब जिस दिन महिला पुरूष दोनो में लागू होने लगेंगे समाज की मानसिकता में काफी सुधार आयेगा। 

तुम अकेली आ गई, बहुत बढ़िया किया, शाबाश, ऐसे ही निडर रहना चाहिए 


सहारे की बात से मुझे याद आता है यदि मैं या कोई महिला किसी कार्यक्रम जो लगभग 50 से 100 किमी दूर हो, अकेले चली जाती है तो यकीन मानिये एक शक्स ही नही, पूरे दस से बीस लोगों के द्वारा यह सुनने को मिल जाएगा, अकेली आई हो और कोई साथ नहीं है।
            किसी को साथ ले आती वगैरह, वगैरह। क्या यहां सकारात्मक दृष्टिकोण नजर नहीं आना चाहिए। जैसे तुम अकेली आ गई, बहुत बढ़िया किया, शाबाश, ऐसे ही निडर रहना चाहिए परंतु नही इस प्रकार के शब्दों का इस्तेमाल कम ही सुनने या देखने को मिलता है। 

हमारे समाज में लड़कियों के जन्म लेते ही भेदभाव करना शुरू हो जाता है

हमारे समाज में लड़कियों और लड़को के पैदा होते ही भेदभाव करना शुरू हो जाता है। यदि लड़की है तो फुल कपड़े पहनो, बाहर अकेले मत आओ, लड़को के साथ बात मत करो, खाना बनाना सीख लो। यही महत्वपूर्ण होते है या कहें पहली प्राथमिकता लड़कियों के जीवन के लिये यही है इसी तरह क्या लड़कों का नही सिखाया जा सकता कि लड़कियों से सम्मान पूर्वक बात करो, उनकी मदद करो, खाना बनाना सीखों क्योकि सम्मान या बराबरी के अधिकार की बात कहें तो यही जरूरी होते है ताकि एक महिला अपने आप को कमतर न आंके क्योंकि बचपन से यदि उसके दिमाग में यही सब बातें बैठा दिया जाता है तो वह अपने आपको कमजोर बेसहारा समझने लगती है और वह भी इसी प्रकार की सलाह देने लगती है। 

कई बार तो एक महिला ही दूसरी महिला के प्रगति पथ पर शूल बनकर खड़ी हो जाती है

अक्सर देखने को मिलता है कि यदि कोई महिला आत्मनिर्भर हैं, अच्छे कपड़े पहनती हैं, अच्छे से तैयार होकर रहती है तो अधिकांश लोग अपने मन से उसका चरित्र तैयार कर लेते है, चाहे भले ही महिला मेहनती हो, अच्छा काम करती है।
                इसमें मैं पुरूष मानसिकता अकेले की बात नहीं कर रही हूं यहाँ उन महिलाओ को भी कहते सुना है जो कामकाजी और सक्रिय रहने वाली महिलाओं के विषय में गलत कहते हुए और उनके बारे में गलत सोचते हुये नजर आती है जिन्हें कोई जानकारी नहीं होती कि महिलाओं के अधिकार क्या है ?
             महिलाओं का दायित्व क्या है। सिर्फ इतना पता होता है कि महिलाओं के काम चार दिवारों में होना चाहिए जो कि समाज द्वारा उन्हें यह संस्कार दिया गया है। इस प्रकार से कई बार तो एक महिला ही दूसरी महिला के प्रगति पथ पर शूल बनकर खड़ी हो जाती है। 

गलत मानसिकता के कारण पुरूष प्रधान समाज मानसिकता को बढ़ावा देने में सहभागी बनती है 

जबकि उसे प्रगति में सहभागी होना चाहिये। इस प्रकार से कही न कही समाज की गलत मानसिकता के कारण पुरूष प्रधान समाज मानसिकता को बढ़ावा देने में सहभागी बनती है। आज समाज में महिलाओं का सबसे ज्यादा योगदान है जिसे समझ कर आने वाली पीढ़ी को सकारात्मक पथ प्रदान कर सकती है।
            महिला सम्मान की बात कहें या महिला सुरक्षा की इसमें भी महिलाओं की भूमिका अहम होती है अक्सर हम सुनते है या देखते है कहीं कन्या भू्रण हत्या की बात आती है तो पति के साथ साथ सासू मां भी शामिल होती है यही समाज के लिये गंभीर चिंतन का विषय है। 

राजनैतिक क्षेत्र में महिलाओं को प्रतिनिधित्व करने का हक कागजों में ज्यादा और जमीनी स्तर पर कम मिलता है 

अब यदि मैं राजनैतिक क्षेत्र की बात कहूं तो महिलाओं को प्रतिनिधित्व करने का हक कागजों में ज्यादा मिला है और जमीनी स्तर में कम मिलता है। यदि किसी महिला ने इस ओर कदम भी रखा है तो कई यातनाएँ झेलनी पड़ी है।
            मेरा इतने वर्षों का अनुभव कहता है कहीं न कहीं  आज भी सिर्फ दो बाते है जो महिलाओं का जीवन परिवर्तित कर सकती है एक आर्थिक मजबूती और दूसरी जागरूकता ऐसा तभी संभव है जब शहरी क्षेत्र की महिला के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र की महिला भी शिक्षित हो और एक दूसरे का सम्मान करे।
         इसलिये मैं वंदना तेकाम देश की महिलाओं को यही संदेश देना चाहती हूं कि ये कभी न कहे, ये कभी सोचे कि मै अकेली हूं। हमेशा यही सोचे कि, मैं अकेले ही काफी हूँ।


लेखिका-विचारक,
वंदना तेकाम,
सामाजिक कार्यकर्ता
नैनपुर, जिला-मण्डला,
मध्यप्रदेश

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